द्रविड़ का क्रिकेट के सभी संस्करणों से सन्यास एक युग के अंत जैसा है । द्रविड़ अपनी शैली , खेल भावना और बेजोड़ प्रतिभा के लिए आने वाले क्रिकेटरों के लिए सदा प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे । द्रविड़ एक दिवसीय टीम से काफी समय पहले बाहर हो चुके थे, लेकिन इंग्लैण्ड के कठिन दौरे को देखते हुए उन्हें टीम में रखा गया और उन्होंने तुरंत घोषणा कर दी कि वह अंतिम एक दिवसीय श्रृंखला खेलेंगे । अंतराष्ट्रीय टी-20 से तो वे पहले विश्व कप के समय से ही खुद को अलग कर चुके थे । द्रविड़ पिछले कुछ समय से टेस्ट टीम के ही सदस्य थे और उनके बिना वर्तमान टेस्ट टीम की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । इंग्लैण्ड में वे अकेले इंग्लैण्ड के गेंदबाजों से लोहा लेते रहे ।नम्बर तीन के बल्लेबाज होते हुए वे ऐसे ओपनर बने जो शरू से लेकर अंत तक नाबाद रहा । उस समय तक यह कल्पना नहीं की जा सकती थी की वे टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह देंगे लेकिन आस्ट्रेलिया के खराब दौरे के बाद उन्होंने बल्ले को टांग देना ही उचित समझा । अगर वे किसी श्रृंखला की शुरुआत में अपने सन्यास की घोषणा करते तो उनके अंतिम टेस्ट को यादगार बनाया जा सकता था लेकिन द्रविड़ की अपनी अलग ही सोच रही । दरअसल वे पूरे करियर में अलग ही तरह की शख्सियत रहे । सचिन गांगुली के दौर में होने के कारण वे उतने सुर्ख़ियों में नहीं रहे जितने के वे हकदार थे । उनकी कोई कमाल की पारी लक्ष्मण की पारी के आगे दब गई, कोई गांगुली की पारी के आगे दब गई तो कोई सचिन की पारी के आगे लेकिन बड़ी संझेदारियों में उनका रहना उनकी योग्यता दर्शाने के लिए काफी है । 2007 में भारत विश्व कप के फाइनल में खेला । निस्संदेह वह गांगुली की कमाल की कप्तानी थी जिसने विदेशी धरती पर टीम को जुझारू बनाया था लेकिन उस विश्व कप में द्रविड़ के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता । भारत के पास धोनी से पहले कभी भी विकेटकीपर के रूप में अच्छा बल्लेबाज नहीं रहा परिणाम स्वरूप एक बल्लेबाज कम हो जाता था । विश्व कप में द्रविड़ ने विकेट कीपिंग की जिससे टीम को अतिरिक्त बल्लेबाज रखने का अवसर मिला परिणाम स्वरूप द. अफ्रीका की तेज पिचों पर भारतीय टीम फाइनल खेली । टीम के हित के लिए कीपिंग करना टेस्ट में पारी को ओपन करना उनकी खेल भावना को दर्शाता है । उनकी तकनीक का तो कोई सानी है ही नही तभी तो वो दीवार कहलाए । भारतीय क्रिकेट को उनके जाने पर काफी क्षति हुई जो भरने में पता नहीं कितना समय लगेगा क्योंकि अभी तक गांगुली द्वारा खाली किया स्थान भी पूरी तरह से नहीं भरा गया । गांगुली नम्बर पांच पर खेलते थे और इस स्थान के लिए खिलाए खिलाडियों में युवराज , रैना , रोहित कोई भी स्थायी नहीं हो पाया । द्रविड़ की जगह भरने के लिए सबकी नजरें कोहली पर हैं लेकिन वो कितना खरा उतरते हैं वह भविष्य ही बताएगा । फिलहाल तो टीम को उनकी कमी बेहद खलेगी ।
द्रविड़ आंकड़ों में
द्रविड़ आंकड़ों में
1 टिप्पणी:
बिलकुल |
शुभकामनायें --
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