त्रिकोणीय श्रृंखला में भारतीय टीम का प्रदर्शन अभी तक अच्छा कहा जा सकता है । चार मैचों में दो जीत, एक टाई और एक हार के आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय टीम फाइनल में पहुंचने की प्रबल दावेदार है । भारतीय टीम ने आस्ट्रेलिया और श्रीलंका दोनों के खिलाफ अंतिम दो मैच बड़े करीबी खेले । आस्ट्रेलिया को हराने में सफलता मिली, लेकिन श्रीलंका के खिलाफ ऐसा नहीं हो पाया ।
भारत श्रीलंका के खिलाफ एक समय सुखद स्थिति में था । अंतिम दस ओवरों में सिर्फ उनसठ रन चाहिए थे यानि प्रति बाल एक रन । इसके बाद के चार ओवरों में हमने आठ रन बनाए । परिणामस्वरूप अंतिम तीन ओवरों में लगभग दस की औसत आ गई । नजदीकी मैच किसी भी तरफ जा सकते हैं । आस्ट्रेलिया के खिलाफ भी यदि नो बाल न मिलती तो परिणाम कुछ और हो सकता था । यह ठीक है कि जब विकेट गिरते हैं तब विकेट बचाना ज्यादा जरूरी हो जाता है, लेकिन तीन-चार सिंगल तो निकलने ही चाहिए, इसके विपरीत हमने 41 वां ओवर मेडन निकाला और एक विकेट भी रन आउट के रूप में गंवाया ।गंभीर और इरफ़ान का रन आउट होना काफी हद तक महंगा साबित हुआ । इरफ़ान का रन आउट होना तो बिलकुल मूर्खतापूर्ण था, क्योंकि वहां रन की संभावना थी ही नहीं । धोनी मूर्खतापूर्ण तरीके से दौड़े । कप्तान की विकेट बचाने के लिए इरफ़ान को बली देनी ही पड़ी । इरफ़ान छ्क्का लगा चुके थे, उन पर विश्वास किया जा सकता था कि स्ट्राइक पर रहने पर वे शाट लगा सकते हैं, जबकि विनय कुमार के आने के बाद एक छोर से बड़े शाट लगने की संभावना समाप्त हो गई । यही कारण था कि अंतिम ओवर में ९ रन बनाकर भारत जीत न सका, जबकि इरफ़ान और धोनी के रहते यह लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकता था ।
श्रीलंका के लिए जीत ज्यादा जरूरी थी और इस मैच के साथ उसकी फाइनल में संभावना क्षीण हुई है । अब उसे कम-से-कम भारत को दोनों मैच हराने होंगे । भारत की स्थिति अच्छी है । भारत को मिडल ऑर्डर में फेरबदल करना चाहिए । रैना , रोहित और मनोज तिवारी में भी उसी तरह से रोटेशन प्रणाली अपनाई जानी चाहिए जैसे कि सचिन, सहवाग और गंभीर में अपने जा रही है ।
भारतीय टीम को गलतियों पर ध्यान देते हुए सुधार के प्रयास जारी रखने होंगे । भारतीय टीम पिछली त्रिकोणीय श्रृंखला की विजेता है और वे इस बार भी विजेता हो सकते हैं । जरूरत है तो मजबूत इरादों की ।
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भारत श्रीलंका के खिलाफ एक समय सुखद स्थिति में था । अंतिम दस ओवरों में सिर्फ उनसठ रन चाहिए थे यानि प्रति बाल एक रन । इसके बाद के चार ओवरों में हमने आठ रन बनाए । परिणामस्वरूप अंतिम तीन ओवरों में लगभग दस की औसत आ गई । नजदीकी मैच किसी भी तरफ जा सकते हैं । आस्ट्रेलिया के खिलाफ भी यदि नो बाल न मिलती तो परिणाम कुछ और हो सकता था । यह ठीक है कि जब विकेट गिरते हैं तब विकेट बचाना ज्यादा जरूरी हो जाता है, लेकिन तीन-चार सिंगल तो निकलने ही चाहिए, इसके विपरीत हमने 41 वां ओवर मेडन निकाला और एक विकेट भी रन आउट के रूप में गंवाया ।गंभीर और इरफ़ान का रन आउट होना काफी हद तक महंगा साबित हुआ । इरफ़ान का रन आउट होना तो बिलकुल मूर्खतापूर्ण था, क्योंकि वहां रन की संभावना थी ही नहीं । धोनी मूर्खतापूर्ण तरीके से दौड़े । कप्तान की विकेट बचाने के लिए इरफ़ान को बली देनी ही पड़ी । इरफ़ान छ्क्का लगा चुके थे, उन पर विश्वास किया जा सकता था कि स्ट्राइक पर रहने पर वे शाट लगा सकते हैं, जबकि विनय कुमार के आने के बाद एक छोर से बड़े शाट लगने की संभावना समाप्त हो गई । यही कारण था कि अंतिम ओवर में ९ रन बनाकर भारत जीत न सका, जबकि इरफ़ान और धोनी के रहते यह लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकता था ।
श्रीलंका के लिए जीत ज्यादा जरूरी थी और इस मैच के साथ उसकी फाइनल में संभावना क्षीण हुई है । अब उसे कम-से-कम भारत को दोनों मैच हराने होंगे । भारत की स्थिति अच्छी है । भारत को मिडल ऑर्डर में फेरबदल करना चाहिए । रैना , रोहित और मनोज तिवारी में भी उसी तरह से रोटेशन प्रणाली अपनाई जानी चाहिए जैसे कि सचिन, सहवाग और गंभीर में अपने जा रही है ।
भारतीय टीम को गलतियों पर ध्यान देते हुए सुधार के प्रयास जारी रखने होंगे । भारतीय टीम पिछली त्रिकोणीय श्रृंखला की विजेता है और वे इस बार भी विजेता हो सकते हैं । जरूरत है तो मजबूत इरादों की ।
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