भारत और वेस्ट इंडीज के बीच अंतिम टेस्ट मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर खेला जाना है. भारतीय टीम यहाँ क्लीन स्वीप के उद्देश्य से उतरेगी. भारतीय टीम में इस बार एक बदलाव है. एकदिवसीय मैचों के धांसू बल्लेबाज़ युवराज सिंह टेस्ट टीम में जगह स्थायी नहीं कर पाए. उनकी जगह पर रोहित शर्मा को मौका दिया गया है. अंतिम एकादश में अब रोहित शर्मा और विराट कोहली में से किसी एक को चुना जाएगा और टेस्ट मैच के अनुभव के आधार पर रोहित शर्मा का पलड़ा भारी पड़ता है. युवराज़ का निकलना साबित करता है कि गांगुली के जाने के बाद अभी तक यह जगह नहीं भरी जा सकी. नम्बर छः के लिए युवराज, रैना , रोहित शर्मा और कोहली में मुख्य रूप से संघर्ष चल रहा है. इनमें से किसी एक खिलाडी का यथाशीघ्र स्थायी होना टीम हित में है. भारतीय क्रिकेट में दो स्थान और खाली होने वाले हैं. हालाँकि निकट भविष्य में तो इसकी संभावना कम है, फिर भी सचिन और द्रविड़ बहुत लम्बा समय टेस्ट क्रिकेट नहीं खेल सकते. इनके सन्यास लेने से पहले तक गांगुली का स्थान स्थायी रूप से भरा जाना टीम को एक साथ अनुभवहीन होने से बचा लेगा. रोहित शर्मा को मिले हुए मौके को भुनाने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए. यह मैच ही निश्चित करेगा कि कौन-कौन से बल्लेबाज़ आस्ट्रेलिया के दौरे पर जाने वाले हैं.
क्रिकेट के मैदान से बाहर इस समय अजहर और काम्बली में आरोप- प्रत्यारोप का दौर जारी है. इन आरोपों के बारे में निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन काम्बली का इतनी देर तक चुप रहना संदेह पैदा करता है. फिर काम्बली कोई सबूत भी तो पेश नहीं कर रहे. सिर्फ विकेटों के पतन को आधार मानकर मैच फिक्स मानना मुश्किल है, क्योंकि यदि यही आधार है तो हाल ही में आस्ट्रेलिया की टीम टेस्ट मैच में 47 पर सिमट गई थी. भारत में इंग्लैण्ड के साथ हुए अंतिम एक दिवसीय मैच एक अन्य उदाहरण है जिसमें इंग्लैण्ड की टीम मजबूत स्थिति के बाद ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी. क्या ये मैच भी फिक्स थे ? नहीं, खेल में अक्सर ऐसा होता है, जब आप कुछ कर नहीं पाते. उस सेमी फाइनल में भी पिच जिस तरह से खलनायक बनी थी, जिस तरह से जयसूर्या गेंद को घुमा रहे थे उस स्थिति में विकेट पर टिकना बहुत मुश्किल काम था. यहाँ मैं अजहर को क्लीन चिट नहीं दे रहा. अजहर और जडेजा दोषी सिद्ध हो चुके हैं, लेकिन हर हारे हुए मैच को मैच फिक्सिंग के साथ जोड़ना किसी भी तरह से उचित नहीं. और अगर आप कोई आरोप लगाने जा रहे हैं तो सिर्फ इतना कहने से काम नहीं चलता कि मेरा मानना है, अपितु ठोस सबूत भी देने होते हैं. काम्बली ने जो सबूत दिया है वह बहुत भरोसेमंद नहीं. टॉस जीत कर पहले गेंदबाज़ी क्यों की गई, यही काम्बली का आरोप है. उनका मानना है कि अजहर ने टीम की रणनीति के विरुद्ध चलकर यह फैसला लिया. अगर यह सच है तो बाकी खिलाडी क्यों नहीं बोले. उस टीम में सचिन, सिद्धू, कुंबले, श्रीनाथ जैसे खिलाडी भी थे, जिनकी छवि पाक-साफ रही है. उन्होंने ने ऐसा होने पर विरोध क्यों नहीं किया ? निस्संदेह ऐसे आरोप-प्रत्यारोप देश की छवि को धूमिल करते हैं. पुराने खिलाडियों को चाहिए की सिर्फ सुर्ख़ियों में आने के लिए ऐसे आरोप न लगाए जाएं जिनके बारे में खुद के पास कोई सबूत न हो.
इस खबर से हटकर अगर मौजूदा श्रृंखला की बात करें तो भारतीय टीम ने मजबूती से वापिसी की है. इंग्लैण्ड के दौरे की निराशा दूर हो चुकी है. अब टीम को खुद को आस्ट्रेलिया दौरे के लिए मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए. यह एक कठिन दौरा होगा. भारतीय क्रिकेट टीम आने वाले वर्षों में रैंकिंग के किस पायदान पर होगी इसका फैसला आस्ट्रेलिया का दौरा ही करेगा.
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क्रिकेट के मैदान से बाहर इस समय अजहर और काम्बली में आरोप- प्रत्यारोप का दौर जारी है. इन आरोपों के बारे में निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन काम्बली का इतनी देर तक चुप रहना संदेह पैदा करता है. फिर काम्बली कोई सबूत भी तो पेश नहीं कर रहे. सिर्फ विकेटों के पतन को आधार मानकर मैच फिक्स मानना मुश्किल है, क्योंकि यदि यही आधार है तो हाल ही में आस्ट्रेलिया की टीम टेस्ट मैच में 47 पर सिमट गई थी. भारत में इंग्लैण्ड के साथ हुए अंतिम एक दिवसीय मैच एक अन्य उदाहरण है जिसमें इंग्लैण्ड की टीम मजबूत स्थिति के बाद ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी. क्या ये मैच भी फिक्स थे ? नहीं, खेल में अक्सर ऐसा होता है, जब आप कुछ कर नहीं पाते. उस सेमी फाइनल में भी पिच जिस तरह से खलनायक बनी थी, जिस तरह से जयसूर्या गेंद को घुमा रहे थे उस स्थिति में विकेट पर टिकना बहुत मुश्किल काम था. यहाँ मैं अजहर को क्लीन चिट नहीं दे रहा. अजहर और जडेजा दोषी सिद्ध हो चुके हैं, लेकिन हर हारे हुए मैच को मैच फिक्सिंग के साथ जोड़ना किसी भी तरह से उचित नहीं. और अगर आप कोई आरोप लगाने जा रहे हैं तो सिर्फ इतना कहने से काम नहीं चलता कि मेरा मानना है, अपितु ठोस सबूत भी देने होते हैं. काम्बली ने जो सबूत दिया है वह बहुत भरोसेमंद नहीं. टॉस जीत कर पहले गेंदबाज़ी क्यों की गई, यही काम्बली का आरोप है. उनका मानना है कि अजहर ने टीम की रणनीति के विरुद्ध चलकर यह फैसला लिया. अगर यह सच है तो बाकी खिलाडी क्यों नहीं बोले. उस टीम में सचिन, सिद्धू, कुंबले, श्रीनाथ जैसे खिलाडी भी थे, जिनकी छवि पाक-साफ रही है. उन्होंने ने ऐसा होने पर विरोध क्यों नहीं किया ? निस्संदेह ऐसे आरोप-प्रत्यारोप देश की छवि को धूमिल करते हैं. पुराने खिलाडियों को चाहिए की सिर्फ सुर्ख़ियों में आने के लिए ऐसे आरोप न लगाए जाएं जिनके बारे में खुद के पास कोई सबूत न हो.
इस खबर से हटकर अगर मौजूदा श्रृंखला की बात करें तो भारतीय टीम ने मजबूती से वापिसी की है. इंग्लैण्ड के दौरे की निराशा दूर हो चुकी है. अब टीम को खुद को आस्ट्रेलिया दौरे के लिए मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए. यह एक कठिन दौरा होगा. भारतीय क्रिकेट टीम आने वाले वर्षों में रैंकिंग के किस पायदान पर होगी इसका फैसला आस्ट्रेलिया का दौरा ही करेगा.
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