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गुरुवार, नवंबर 17, 2011

कोलकाता में जीत, लक्ष्य क्लीन स्वीप

जैसी की उम्मीद थी भारतीय टीम ने चौथे दिन ही कोलकाता टेस्ट में जीत हासिल कर ली. हालाँकि अपनी दूसरी पारी में वेस्ट इंडीज ने जबरदस्त संघर्ष किया और भारत बड़ी मुश्किल से उन्हें पारी से हरा पाया. वैसे यह परिणाम यह तो साबित करता ही है कि धोनी ने सही समय पर पारी घोषित की थी. कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि धोनी की कप्तानी अति रक्षात्मक है. हम इसे रक्षात्मक कह सकते थे अगर धोनी ने इतना स्कोर बनाने के लिए दो दिन से ज्यादा खेलने का फैसला लिया होता. अगर आप पहली पारी में पूरे रंग में बल्लेबाज़ी कर रहे हैं तो ग्यारह घंटे बल्लेबाज़ी करनी ही चाहिए. सभी टीमें ऐसा ही करती हैं. ग्यारह घंटे अर्थात दूसरे दिन चायकाल के एक घंटे बाद तक. यह बहुत योजनाबद्ध होता है. विपक्षी टीम को अंतिम घंटे में बारह-तेरह ओवर खेलने होते हैं. अगले दिन तक विकेट बचाने का अतिरिक्त दवाब उन पर रहता है, ऐसे में अक्सर एक-दो विकेट मिल जाते हैं. जब पहली पारी में आप अच्छा खेल रहे हों तो जरूरी हो जाता है कि ऐसी स्थिति में पहुंचा जाए यहाँ से दोबारा बल्लेबाज़ी न करनी पड़े और अगर बल्लेबाज़ी करनी पड़े तो दवाब न बने. पहली पारी में अच्छा प्रदर्शन इस बात की गारंटी नहीं होता कि दूसरी पारी भी उसी लय से खेली जा सके. भारतीय टीम ने भी इसी रणनीति के अंतर्गत पहली पारी में बल्लेबाज़ी की और गेंदबाजों को पर्याप्त समय उपलब्ध करवाया. गेंदबाजों पर इतना भरोसा तो एक कप्तान को होता ही है कि वे 280 ओवर में विपक्षी टीम को दो बार आउट कर देंगे. धोनी ने भी यही भरोसा करके दूसरे दिन चायकाल से बाद भी खेलने का फैसला किया होगा. गेंदबाजों ने भी इस भरोसे को टूटने नहीं दिया. यादव ने पूरे मैच में सात विकेट हासिल किए और ओझा ने छह. अश्विन ने चार और इशांत को भी दो विकेट मिले. कुल मिलाकर यह एक ऐसा मैच था जिसमें लगभग हर खिलाडी ने योगदान दिया, और जब सभी खिलाडी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हों तब जीत पक्की होती है. अब भारत को वेस्ट इंडीज के साथ आखिरी टेस्ट मुंबई में खेलना है. भारतीय टीम निश्चित रूप से क्लीन स्वीप की सोच रही होगी. 


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