पहले दिन के आधार पर किसी टेस्ट के परिणाम की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, ऐसे में यह कहना तर्क संगत नहीं होगा कि सिडनी टेस्ट में भारतीय टीम हार की ओर बढ़ रही है. हाँ, इतना कहा जा सकता है कि भारतीय टीम बैकफुट पर चली गई है और इस स्थिति से निकलने के लिए करिश्माई प्रदर्शन की जरूरत है.
सिडनी टेस्ट में भारत की संभावनों का काफी शोर था. सचिन के लिए यह मैदान विशेष अर्थ रखता है, ऐसा भी प्रचार था, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों ने घुटने टेकने का क्रम जारी रखा. न किसी बल्लेबाज ने बड़ी पारी खेली ओर न ही कोई बड़ी सांझेदारी हुई. परिणाम स्वरूप टीम दो सौ से पहले ही सिमट गई. अब दवाब भारतीय गेंदबाजों पर है. आस्ट्रेलिया को 250 रनों के भीतर रोकना जरूरी है. अगर ऐसा न हो पाया तो भारतीय टीम के मैच जीतने की कोई संभावना शेष नहीं रह जाएगी.
दूसरे दिन का पहला घंटा बेहद महत्वपूर्ण है. अगर इस दौरान दो-तीन विकेट मिल गए तो आस्ट्रेलियाई टीम को जल्दी समेटा जा सकता है, अगर ऐसा न हुआ तो आस्ट्रेलियाई टीम बड़ी बढत बनाकर मैच को एक तरफा कर देगी. ऐसी हालत में तो मैच के चौथे दिन में जाने के आसार भी कम ही दिखते हैं.
रणनीति के तौर भी कुछ गलती हुई लगती है. भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला लिया, यह जानते हुए कि भारतीय बल्लेबाज लगातार लचर प्रदर्शन कर रहे हैं. ऐसे में पहले दिन खुद बल्लेबाजी करने से हर हाल में बचना चाहिए था. चौथी पारी में भी भारतीय प्रदर्शन अच्छा नहीं, संभव है इसी को देखकर यह फैसला लिया गया हो, लेकिन चौथी पारी में खेलने का खतरा पहली पारी में खेलने से कम खतरनाक था, फिर दूसरी पारी में अच्छी बल्लेबाजी की उम्मीद की जा सकती थी. भारत अगर आस्ट्रेलिया को पहले खिलाकर बाद में उससे कुछ बढत ले लेता तो चौथी पारी आसान हो जाती. लेकिन कप्तान की सोच दूसरी थी. उसने उम्मीद की होगी कि भारतीय बल्लेबाज़ बड़ा स्कोर बनाकर दवाब बनाएँगे, लेकिन यह भारतीय मैदान न होकर आस्ट्रेलियाई मैदान था ओर इसी का हौवा बल्लेबाजों पर भारी पड़ा. भारतीय टीम के लिए दूसरा दिन करो या मरो का होगा ओर पहला सत्र ही बता देगा कि भारत मैच में संघर्ष कर सकता है या खेल खत्म हो गया है.
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सिडनी टेस्ट में भारत की संभावनों का काफी शोर था. सचिन के लिए यह मैदान विशेष अर्थ रखता है, ऐसा भी प्रचार था, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों ने घुटने टेकने का क्रम जारी रखा. न किसी बल्लेबाज ने बड़ी पारी खेली ओर न ही कोई बड़ी सांझेदारी हुई. परिणाम स्वरूप टीम दो सौ से पहले ही सिमट गई. अब दवाब भारतीय गेंदबाजों पर है. आस्ट्रेलिया को 250 रनों के भीतर रोकना जरूरी है. अगर ऐसा न हो पाया तो भारतीय टीम के मैच जीतने की कोई संभावना शेष नहीं रह जाएगी.
दूसरे दिन का पहला घंटा बेहद महत्वपूर्ण है. अगर इस दौरान दो-तीन विकेट मिल गए तो आस्ट्रेलियाई टीम को जल्दी समेटा जा सकता है, अगर ऐसा न हुआ तो आस्ट्रेलियाई टीम बड़ी बढत बनाकर मैच को एक तरफा कर देगी. ऐसी हालत में तो मैच के चौथे दिन में जाने के आसार भी कम ही दिखते हैं.
रणनीति के तौर भी कुछ गलती हुई लगती है. भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला लिया, यह जानते हुए कि भारतीय बल्लेबाज लगातार लचर प्रदर्शन कर रहे हैं. ऐसे में पहले दिन खुद बल्लेबाजी करने से हर हाल में बचना चाहिए था. चौथी पारी में भी भारतीय प्रदर्शन अच्छा नहीं, संभव है इसी को देखकर यह फैसला लिया गया हो, लेकिन चौथी पारी में खेलने का खतरा पहली पारी में खेलने से कम खतरनाक था, फिर दूसरी पारी में अच्छी बल्लेबाजी की उम्मीद की जा सकती थी. भारत अगर आस्ट्रेलिया को पहले खिलाकर बाद में उससे कुछ बढत ले लेता तो चौथी पारी आसान हो जाती. लेकिन कप्तान की सोच दूसरी थी. उसने उम्मीद की होगी कि भारतीय बल्लेबाज़ बड़ा स्कोर बनाकर दवाब बनाएँगे, लेकिन यह भारतीय मैदान न होकर आस्ट्रेलियाई मैदान था ओर इसी का हौवा बल्लेबाजों पर भारी पड़ा. भारतीय टीम के लिए दूसरा दिन करो या मरो का होगा ओर पहला सत्र ही बता देगा कि भारत मैच में संघर्ष कर सकता है या खेल खत्म हो गया है.
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